कौन है शिक्षक
*मत पूछिए कि शिक्षक कौन है?*
*आपके प्रश्न का सटीक उत्तर*
*आपका मौन है।*
*शिक्षक न पद है, न पेशा है,*
*न व्यवसाय है ।*
*ना ही गृहस्थी चलाने वाली*
*कोई आय हैं।।*
*शिक्षक सभी धर्मों से ऊंचा धर्म है।* *
गीता में उपदेशित*
*"मा फलेषु "वाला कर्म है ।।*
शिक्षक एक प्रवाह है ।*
*मंज़िल नहीं राह है ।।*
*शिक्षक पवित्र है।*
*महक फैलाने वाला इत्र है*
*शिक्षक स्वयं जिज्ञासा है ।*
*खुद कुआं है पर प्यासा है ।।*
*वह डालता है चांद सितारों ,*
*तक को तुम्हारी झोली में।*
*वह बोलता है बिल्कुल,*
*तुम्हारी बोली में।।*
*वह कभी मित्र,*बहन बन्धु
तो कभी मां तो ,*
*कभी पिता का हाथ है ।*
*साथ ना रहते हुए भी,*
*ताउम्र तुम्हारे साथ है।।*
*वह नायक ,खलनायक ,*
*तो कभी विदूषक बन जाता है ।*
*तुम्हारे लिए न जाने,*
*कितने मुखौटे लगाता है।।*
*इतने मुखौटों के बाद भी,*
*वह समभाव है ।*
*क्योंकि यही तो उसका,*
*सहज स्वभाव है ।।*
*शिक्षक कबीर के गोविंद सा,*
*बहुत ऊंचा है ।*
*कहो भला कौन,*
*उस तक पहुंचा है ।।*
*वह न वृक्ष है ,*
*न पत्तियां है,*न फूल
*न फल है।*
*वह केवल खाद है।*
*वह खाद बनकर,*
*हजारों को पनपाता है।*
*और खुद मिट कर,*
*उन सब में लहराता है।।*
*शिक्षक एक विचार है।*
*दर्पण है , संस्कार है ।।*
*शिक्षक न दीपक है,*
*न बाती है,*
*न रोशनी है।*
*वह स्निग्ध तेल है।*
*क्योंकि उसी पर,*
*दीपक का सारा खेल है।।*
*शिक्षक तुम हो, तुम्हारे भीतर की*
*प्रत्येक अभिव्यक्ति है।*
*कैसे कह सकते हो,*
*कि वह केवल एक व्यक्ति है।।*
*शिक्षक चाणक्य, सान्दिपनी*
*तो कभी विश्वामित्र है ।*
*गुरु और शिष्य की*
*प्रवाही परंपरा का चित्र है।।*
*शिक्षक भाषा का मर्म है ।*
*अपने शिष्यों के लिए धर्म है ।।*
*साक्षी और साक्ष्य है ।*
*चिर अन्वेषित लक्ष्य है
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